क्या बदलने वाला है MRP सिस्टम? जानिए सरकार की नई योजना
🛍️ ऑफर के पीछे की असलियत क्या है?
आपने कई बार ऑनलाइन या सुपरमार्केट में देखा होगा कि किसी प्रोडक्ट पर भारी डिस्काउंट दिखाया जाता है।
जैसे-जैसे ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ी है, वैसे-वैसे
“80% तक छूट” जैसी स्कीमें आम हो गई हैं।
पर क्या यह छूट असली होती है? दरअसल नहीं! ये केवल ग्राहक के माइंड से खेलने का एक तरीका है।
उदाहरण:
एक शूज़ की असली कीमत
₹1000 है, लेकिन पहले उसका MRP
₹3000 दिखा कर फिर
₹1500 में बेचा जाता है — ताकि
“50% छूट” जैसा भ्रम पैदा किया जा सके।
⚠️ समस्या क्या है मौजूदा MRP
सिस्टम में?
एक जैसी वस्तुएं (क्वालिटी और मात्रा में समान) भी अलग-अलग MRP
पर बिकती हैं।
कई बार MRP
जानबूझकर अधिक रखी जाती है ताकि अधिक छूट दिखाया जा सके।
इससे उपभोक्ता भ्रमित होता है और पारदर्शिता खत्म होती है।
भारत में MRP
कैसे काम करता है?
एमआरपी
(MRP) का मतलब है अधिकतम खुदरा मूल्य — वह अधिकतम कीमत जिस पर कोई पैकेज्ड प्रोडक्ट बेचा जा सकता है।
इससे ज्यादा दाम पर बेचना अवैध है।
MRP में निम्नलिखित सभी चीजें शामिल होती हैं:
उत्पादन लागत
प्रॉफिट मार्जिन
विज्ञापन और मार्केटिंग खर्च
ट्रांसपोर्ट और टैक्स (जैसे
GST)
रिटेलर/डिस्ट्रीब्यूटर मार्जिन
📌 महत्वपूर्ण तथ्य:
सरकार MRP
तय नहीं करती। यह मूल्य निर्माता या विक्रेता द्वारा निर्धारित किया जाता है।
🔄 बदलाव की जरूरत क्यों?
अनियंत्रित मूल्य वृद्धि
भारी और भ्रमित करने वाले
"डिस्काउंट"
पारदर्शिता की कमी
एक जैसे उत्पादों में कीमत का अंतर
पुरानी प्रणाली, जिसमें अपडेट की आवश्यकता है
🌍 क्या है SRP
प्रणाली?
(Suggested Retail Price)
एसआरपी यानी सुझावित खुदरा मूल्य, जिसे अमेरिका और यूरोप में अपनाया गया है। यह सिर्फ एक सुझाव होता है, न कि कानूनी बाध्यता। विक्रेता अपने हिसाब से थोड़ा ऊपर-नीचे कर सकते हैं, खासतौर पर ट्रांसपोर्ट और स्थान के आधार पर। इसमें पारदर्शिता बनी रहती है और उपभोक्ता को भी धोखा नहीं होता। भारत में एमआरपी कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है जबकि एसआरपी में लचीलापन होता है
SRP के लाभ:
उपभोक्ता और विक्रेता दोनों को मूल्य निर्धारण में लचीलापन
पारदर्शिता बनी रहती है
स्थान, लॉजिस्टिक्स आदि के अनुसार मूल्य थोड़ा ऊपर-नीचे किया जा सकता है
📜 सरकार की योजना और कानूनी पहलू
✅ विचार-विमर्श:
उद्योग संगठन, उपभोक्ता संगठन और कर अधिकारियों से सलाह
आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारण को लागत से जोड़ने की योजना
✅ संभावित कानून:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
2019 – MRP से अधिक वसूली अनुचित व्यापार व्यवहार
लीगल मेट्रोलॉजी अधिनियम
2009 – पैकेजिंग व मूल्य पर नियंत्रण
आवश्यक वस्तु अधिनियम
1955 – जरूरी उत्पादों के मूल्य निर्धारण का अधिकार
GST अधिनियम – टैक्स की पारदर्शिता सुनिश्चित करना
⚠️ क्या हैं संभावित चुनौतियां?
कुछ विक्रेता मानते हैं कि भारत के लिए वर्तमान MRP
प्रणाली ही उपयुक्त है।
लागत आधारित मूल्य से कम मुनाफे वाले उत्पाद बाजार से गायब हो सकते हैं।
SRP को GST
सिस्टम से जोड़ना एक तकनीकी चुनौती हो सकती है।
✅ समाधान क्या हो सकता है?
SRP एक वैकल्पिक समाधान हो सकता है, लेकिन इसके लिए मजबूत गाइडलाइंस की जरूरत होगी।
सरकार विचार कर रही है कि SRP
को लागू करने से पहले मौजूदा MRP
प्रणाली को और पारदर्शी बनाया जाए।
🙏 निष्कर्ष:
एमआरपी प्रणाली में सुधार की ज़रूरत को सरकार ने पहचाना है। SRP
एक वैकल्पिक रास्ता हो सकता है लेकिन इसे लागू करने से पहले कई पहलुओं पर ध्यान देना होगा। उपभोक्ताओं की पारदर्शिता, सुरक्षा और अधिकार को सुनिश्चित करना इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य है।

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